यह कहानी है 1946 में जन्में हरभजन सिंह की, जो 1966 में भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में सिपाही के पद पर भर्ती हुए थे। मात्र दो साल की नौकरी करके 1968 में सिक्किम के नाथूला दर्रे के पास एक दुर्घटना में शहीद हो गए। हुआ यूं की एक दिन जब वे खच्चर पर बैठकर नदी पार कर रहे थे तो, पाँव फिसलने से वे घाटी में गिर पडें और खच्चर सहित नदी में बह गए। दो दिन की तलाशी के बाद भी जब उनका शव नहीं मिला तो उन्होनें खुद अपने एक साथी सैनिक के सपने में आकार अपने शव की जगह बताई। सवेरे सैनिकों ने बताई गई जगह से उनका शव बरामद किया और उनका अंतिम संस्कार कर दिया। बाद में जब उनके चमत्कार बढनें लगे और विशाल जनसमूह के आस्था का केंद्र हो गए तो उनके लिए एक मंदिर का निर्माण किया गया जो बाबा हरभजन सिंह मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर सिक्किम के नाथू-ला दर्रे के पास 13000 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस इलाके मे आने वाला हर सेनिक पहले बाबा हरभजन के मंदिर में धोक लगाने आता है।कहा जाता है कि मृत्यु के बाद भी बाबा हरभजन सिंह नाथूला के आसपास चीनी सेना की गतिविधियों की जानकारी सैनिकों को सपने में देते रहे जो हमेशा सच साबित होती थी। बाबा की आत्मा से जुडी बातें चीनी सेना भी बताती है। चीनी सेनिकों ने भी उनकों घोडे पर सवार होकर रात में गश्त लगाने की पुष्टी की है। भारत और चीन की सेना आज भी बाबा हरभजन के होने पर यकीन करती है। इसीलिए दोनों देशों की होने वाली फ्लैग मीटिंग में एक कुर्सी बाबा हरभजन के नाम पर खाली रखी जाती है, ताकि वो मीटिंग अटेंड कर सकें । इन्हीं तथ्यों के आधार पर उनकों मरणोपरांत भी भारतीय सेना मे रखा गया।बाबा हरभजन सिंह अपनी मृत्यु के बाद भी पिछले 50 साल से भारत-चीन सीमा पर मुस्तैदी से पहरा दे रहे हैं । इसके लिए उन्हे बाकायदा तनख्वाह भी दी जा रही है। नियमानुसार इनका प्रमोशन भी किया जाता है, वर्तमान में बाबा हरभजन सिंह केप्टन के पद पर हैं । यहां तक की उन्हें कुछ साल पहले तक दो महीने की छुट्टी पर गाँव भी भेजा जाता था। इसके लिए ट्रैन में सीट रिजर्व की जाती थी। तीन सैनिकों के साथ उनका सारा सामान उनके गाँव भेजा जाता था। दो महीने पुरे होने पर फिर से सिक्किम लाया जाता था। जिन दो महीनें बाबा छुट्टी पर रहते थे, उस दरमियान पूरा बार्डर हाई अलर्ट पर रहता था, क्योकि उस वक्त सैनिकों को बाबा की मदद नहीं मिल पाती थी। लेकिन बाबा का सिक्किम से जाना और वापस आना एक धार्मिक आयोजन का रूप लेता जा रहा था। कुछ लोग इस आयोजन को अंधविश्वास को बढावा देने वाला मानते थे। उन्होनें अदालत का दरवाजा खटखटाया क्योकि सेना में किसी भी प्रकार के अंधविश्वास की मनाही होती है। लिहाजा सेना ने बाबा को छुट्टी पर भेजना बंद कर दिया। अब बाबा बारह महीनें डयूटी पर रहते हैं । बाबा हरभजन सिंह का मंदिर सेना और स्थानिय लोगो की आस्था का केंद्र है। इस इलाके मे आने वाली हर सैनिक पलाटुन पहले बाबा हरभजन के मंदिर में धोक लगाने आती हैं । मंदिर के अन्दर बाबा की फोटो और उनकी सेना वाली वर्दी-जुते आदि सामान रखा है। मंदिर में बाबा का एक कमरा भी है, जिसमें प्रतिदिन सफाई करके बिस्तर लगाया जाता है। कहते है कि रोज सफाई करने पर भी उनके जूतो में कीचड़ और चद्दर पर सलवटें पाई जाती हैं । इस मंदिर को लेकर यहां के स्थानिय लोगों में एक मान्यता है कि यदि इस मंदिर में बोतल भरकर पानी को तीन दिन के लिए रख दिया जाए तो उस पानी में चमत्कारिक औषधिय गुण आ जाते हैं । इस पानी को पीने से रोग दूर होते हैं । कहने को तो बाबा हरभजन की मृत्यु को 50 साल हो चुके हैं , लेकिन भारतीय सेना और स्थानीय लोगों के दिलों में बाबा आज भी जिंदा हैं । दिनों दिन इनकी ख्याति देशभर में ही नहीं बल्कि सीमापार चीनी सेना में भी बढ़ रही है।
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